बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

बेशरम इतने तुम क्यों हुए 'सागर'

सनम बेवफ़ा हो तो जियें किस की ख़ातिर ।
न पढ़े ग़ज़ल कोई तो लिखें किस की ख़ातिर ।।
मेरे  रोने  से  गर  कोई   हँस  रहा  हो  तो ।
उसको  रुला  कर  हँसे  किस  की  ख़ातिर ।।
परवाना   जलता   है   शमां   की   चाहत   में ।
न चाहा किसी ने हमें हम जलें किस की ख़ातिर ।।
लोग पीते हैं ज़माने में अपनों को भुलाने के लिए ।
मेरा अपना नहीं कोई हम पियें किस की ख़ातिर ।।
बेशरम   इतने   तुम   क्यों   हुए   'सागर' ।
तुम्हें  चाहने  वाले  और  भी  थे  आख़िर ।।

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